नींव पड़ी थी.....

नींव पड़ी थी अपने रिश्तों की
बात हो जैसे कई बरसों की

मिलते थे जहाँ पे छुप-छुप के
याद है, बाड़ थी वह सरसों की

बिछुड़े मुद्दत हुई हमें फिर भी
बात लगती है कल-परसों की

तुम तो इक साल भी न साथ चले
बात करते थे सात-जन्मों की

बारहा उसकी याद जो लाएं
छोड़िये बात ऐसे सपनों की

जब भी दिया हमको गम ही दिया
क्या कहें 'राकेश' ऐसे अपनों की
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