नींव पड़ी थी अपने रिश्तों की
बात हो जैसे कई बरसों की
मिलते थे जहाँ पे छुप-छुप के
याद है, बाड़ थी वह सरसों की
बिछुड़े मुद्दत हुई हमें फिर भी
बात लगती है कल-परसों की
तुम तो इक साल भी न साथ चले
बात करते थे सात-जन्मों की
बारहा उसकी याद जो लाएं
छोड़िये बात ऐसे सपनों की
जब भी दिया हमको गम ही दिया
क्या कहें 'राकेश' ऐसे अपनों की
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