तुमसे पहले मैंने किसी पे यकीं किया न था
इस धोखे से पहले कोई धोखा हुआ न था
तेरी नजरों का स्पर्श दिल में घर कर गया
तुमसे पहले तो किसी ने इस तरह देखा न था
क्या पता कैसी होती हैं बियाबान की रातें
शाम के बाद घर से मैं कभी निकला न था
अब मैं समझा उसकी इस नाकामयाबी का सबब
हौसला करके वो पूरा राह पे चला न था
इन हुस्न वालों से न रखिए वफा की उम्मीद
वक्त पे देंगे ये धोखा यह कहता न था
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