ग़ज़ल : किताब-ए इश्क

किताब-ए इश्क पढ़ते रहना, शरहें, लिखते रहना
कागज-ए-दिल पे अपनी सारी बातें लिखते रहना

किसने तेरा गम बाँटा और किसने ताने दिए
तुमने जुदाई में कैसे काटी रातें लिखते रहना

यादों के तूफां उठे कब-कब दिल के समन्दर में
कब-कब बेताब हुई मिलने को धड़कनें लिखते रहना

जहन में क्या-क्या चली हैं बातें मुझको ले लेकर
तेरी आँखों ने क्या देखें, सपनें लिखते रहना

खोए हुए मेरे चेहरे को ढूँढा तुमने कब तक आखिर
ढूंढ रही थी कहाँ-कहाँ मुझको आँखें लिखते रहना

'गालिब' 'मीर' 'ज़ोक' की तरह जानेंगे लोग तुम्हें भी
जीवन के हर पहलू पे 'राकेश' ग़ज़लें लिखते रहना।
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