हमसे हर किसी ने बस इतना ही वास्ता रक्खा
सिर्फ गरज के लिए ही हमको अपना आशना रक्खा
हमने जिसको भी चाहा, तहे दिल से चाहा मगर
सभी ने दिलों के दरमियां सदा फासिला रक्खा
जहाँ तक याद है, मैंने सबसे वफा निभाईं है
फिर भी हर किसी ने मेरा नाम बेवफा रक्खा
असलियत जान जाएंगे तो लौट आएंगे वो भी
इसी आस में हमने दरवाजा-ए-दिल खुला रक्खा
अपनों के चेहरे भी आए नज़र बेगाने हमें
जब भी हमने उनके आगे आईना रक्खा
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