तुम्हारी नजर झुके.....

तुम्हारी नजर झुके तो शाम हो जाये
मयखाने में भीड़ जाम पे जाम हो जाये

तुम चाहो तो कुछ भी कर दो
अगर पानी छु दो तो शराब हो जाये

तुम्हारी नजर तीर तलवार से भी बढ़कर है
अगर चाहो तो शहर में कत्ले आम हो जाये

अपने चाहने वालो की दीवानगी तो देखो
उनकी हर ख़ुशी तुम्हारे नाम हो जाये

मैं दुआ करता हूँ रब से
खुदा से भी ऊपर तेरा मुकाम हो जाये
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मुझ को ढूढ़ते है वो ....

शाम होती है एक दर्द की रात लिए
रुलाती है बहुत दिल की बात लिए

वफा करके बहुत ही दोस्तों
दिल रोता है आँखों में आंसू लिए

कभी जिनकी निगरानी हम किया करते थे
वही आज हमें ढूढ़ते है खंजर को हाथ लिए

गमो के समंदर को वो एक नाटक करार देते है
मुझ को ढूढ़ते है वो दुश्मन को साथ लिए
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