धीरे से सरकती है रात उस के आंचल की तरह,
उस का चेहरा नजर आता है झील में कमल की तरह,
मुद्दतों बाद उसको देखा तो जिस्म-ओ-जान को यूं लगा,
प्यासी जमीन पे जैसे कोई बरस गया बादल की तरह,
रोज कहती है बांहों के घेरे में रातभर सुलाऊँगी,
सरे-शाम ही मुझे आज फिर सुला गयी वो कल की तरह,
उस का शरमाना भी मुझे मात देता है,
उसकी तो हर अदा है किसी खामोश कातिल की तरह,
धीरे से सरकती है रात उसके आंचल की तरह...
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