ये दूर जाने वाले.....

ये दूर जाने वाले कभी तो पलट के देखा होता,
एक साथी जो तेरा था वो राह में छूट गया!
प्यारे से बंधन को जो हम निभा रहे थे,
न जाने किसकी गलती से वो टूट गया!

अब तो तन्हाईया और गम ही संग हैं,
और साथ देने को आँखों से आँसू भी छूट गया!
न जाने कितने रंग दिखायेगी ये जिंदगी,
जब जिंदगी का सितारा ही टूट गया!

जिंदगी में प्यार का जो अनमोल खजाना था,
वो न जाने कौन अनजाना लूट गया!
दो पल की ये जिंदगी अब नजर आती है,
नजरो का सपना जब से टूट गया!

न हो तुम पर तुम्हारी यादे ही सही,
इन यादो का दामन तो न छूट गया!
प्यार बहुत किया था मैंने तुम्हे पागल,
पर एक मोड़ पे हाथो से हाथ छूट गया!!!



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दुनिया में रोने वालों...

दुनिया में रोने वालों की कमी नहीं है
मिलती है रोटी तो वो भी पचती नहीं है

स्लमडॉग बनी, तो पुरूषों ने आरोप लगाया
स्लमबीच पर क्यों कोई फ़िल्म बनती नहीं है?

नारी की दुर्दशा पर टप-टप टेसू बहाते हैं जो
मायावती, सोनिया क्यों उन्हें दिखती नहीं है?

नारी की हिमायत करने वालो, मैक्सिम तो देखों
फ़्रिडो है कवर पे, देव की तस्वीर कहीं नहीं है

न नारी है दूध की धुली, न आदमी है पापी
जब तक न हाथ मिलें, ताली बजती नहीं है ||






राहुल उपाध्याय
सिएटल 425-445-0827
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Funny: मच्छरिया ग़ज़ल

मच्छरों ने हमको काटकर चूसा है इस तरह

आदमकद आइना भी अब जरा छोटा चाहिए ।

घर हो या दालान मच्छर भरे हैं हर तरफ

इनसे बचने सोने का कमरा छोटा चाहिए ।

डीडीटी, ओडोमॉस, अगरबत्ती, और आलआउट

अब तो मसहरी का हर छेद छोटा चाहिए ।

एक चादर सरोपा बदन ढंकने नाकाफी है

इस आफत से बचने क़द भी छोटा चाहिए ।

सुहानी यादों का वक्त हो या ग़म पीने का

मच्छरों से बचने अब शाम छोटा चाहिए ।



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Funny : मच्छर चालीसा

जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर ।
नगर दूत अतुलित बलधामा, तुमको जीत न पाए रामा ।

गुप्त रूप घर तुम आ जाते, भीम रूप घर तुम खा जाते ।
मधुर मधुर खुजलाहट लाते, सबकी देह लाल कर जाते ।

वैद्य हकीम के तुम रखवाले, हर घर में हो रहने वाले ।
हो मलेरिया के तुम दाता, तुम खटमल के छोटे भ्राता ।

नाम तुम्हारे बाजे डंका ,तुमको नहीं काल की शंका ।
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारा, हर घर में हो परचम तुम्हारा ।

सभी जगह तुम आदर पाते, बिना इजाजत के घुस जाते ।
कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां न रिश्तेदारी जोड़ी ।

जनता तुम्हे खूब पहचाने, नगर पालिका लोहा माने ।
डरकर तुमको यह वर दीना, जब तक जी चाहे सो जीना ।

भेदभाव तुमको नही भावें, प्रेम तुम्हारा सब कोई पावे ।
रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बडा न तुमने माना ।

खावन-पढन न सोवन देते, दुख देते सब सुख हर लेते ।
भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्माते ।

बाद में रोग मिले बहु पीड़ा, जगत निरन्तर मच्छर क्रीड़ा |
जो मच्छर चालीसा गाये, सब दुख मिले रोग सब पाये ।|



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ए मोहब्बत....

ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तेरे नाम पे रोना आया.....

यू तो हर शाम उम्मीदों मे गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया.....

कभी तक़दीर का मातम, कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ मे हर गम पे रोना आया......

जब हुआ ज़िक्र ज़माने मे मोहब्बत का
मुझको अपने दिल-ए-बेक़ाम पे रोना आया.....



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उनको ये शिकायत है...

उनको ये शिकायत है.. मैं बेवफ़ाई पे नही लिखता,
और मैं सोचता हूँ कि मैं उनकी रुसवाई पे नही लिखता.'

ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की.. बुराई पे नही लिखता.'

कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता.'

दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी.. सफ़ाई पे नही लिखता.'

शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़.. मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की.. कमाई पे नही लिखता.'

उसकी ताक़त का नशा.. "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता.'

समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी.. गहराई पे नही लिखता.'

पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'

तजुर्बा तेरी मोहब्बत का'.. ना लिखने की वजह बस ये!!
क़ि Rakesh इश्क़ में ख़ुद अपनी, तबाही पे नही लिखता...!!!"
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दुश्मन तो मगर...

न रोटी का चाहिये , न मुझे घर का चाहिये
लेकिन मुझे हिसाब, कटे सर का चाहिये

कमतर से दोस्ती मे शिकायत नहीं मुझे
दुश्मन तो मगर मुझको,बराबर का चाहिये

ऐसी लहर उठाये जो दुनिया को हिला दे
दर्जा अगर किसी को , समन्दर का चाहिये

बदला है क्या बताओ, संभलने के वास्ते
हमको सहारा आज भी, ठोकर का चाहिये

उनसे कहो कि हमको बुलाया नहीं करें
जिनको तमाशा मंच पे , जोकर क चाहिये


सादर
डा. उदय मणि
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हमें मालूम है तुमको..

शरारत बादलों की ये , धरा के साथ होती है
जरूरत किस जगह पर है , कहाँ बरसात होती है

हमें मालूम है तुमको बहुत अच्छा नहीं लगता
तुम्हारी महफिलों में जब , हमारी बात होती है

हमारी जिंदगी तो जंग के , मैदान जैसी है
जहाँ कमजोर लोगों की , हमेशा मात होती है

ये दहशतगर्द हैं इनको , किसी मजहब से मत जोडो
न इनका धर्म होता है , न इनकी जात होती है

उदय तुम जिस जगह पर हो , वहीं पे दिन निकलता है
जहाँ पे तुम नहीं होते , वहाँ पे रात होती है

..... डा उदय 'मणि '
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खूबसूरत है वो...

खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए कोई दुआ आ जाए,

खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए,

खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए,

खूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समज जाए,

खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो जाए,

खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से, कहानियाँ,

खूबसूरत है वो आँखे जिनमे किसी के खूबसूरत ख्वाब समा जाए,

खूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए,

खूबसूरत है वो सोच जिस मैं किसी कि सारी ख़ुशी झुप जाए,

खूबसूरत है वो दामन जो दुनिया से किसी के गमो को छुपा जाए,

खूबसूरत है वो किसी के आँखों के आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जा
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