होठों पे मोहब्बत....

होठों पे मोहब्बत के फसाने नही आते,
साहिल पे समुंद्र के खज़ाने नही आते.

पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी,
आंखो को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते.

दिल उजडी हुई एक सराये की तरह है,
अब लोग यहा रात बिताने नही आते.

यारो नये मौसम ने ये एहसान किये है,
अब याद मुझे दर्द पुराने नही आते.

उडने दो परिंदो को अभी शोख हवा मे,
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते.

इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फो की तरह है,
ये आग लगाते है, बुझाने नही आते.

एहबाब भी गैरो की अदा सीख गये है,
आते है मगर दिल को दुखाने नही आते.
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