सारी जिन्दगी जीते रहे हम ख्वाबों में
होती नहीं खुशबू कभी काग़जी गुलाबों में
जुदा हो गए हम मिलने से पहले ही
कुछ तो रही है कमी हमारे भी हिसाबों में
भूल हो गई हमसे उनको समझने में ही
छिपा रखा था उसने खुद को जो हिज़ाबों में
न रहा कोई हमसे मुहब्बत करने वाला अब
हम भी तो हैं अब जहां के खाना खराबों में
मुहब्बत में वो सब नज़र नहीं आया कभी
हमने जो कुछ भी पढ़ा था किताबों में
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