ग़ज़ल : दिल बना है मेरा

दिल बना है मेरा शायद गम छिपाने को
आँखें दी हैं खुदा ने आँसू बहाने को

जब से छोड़ा है उसने मुझ दीवाने को
प्यारा लगने लगा हूँ मैं भी जमाने को

उसकी जरूरत है न उसका प्यार लाज़मी
है उसकी याद बहुत दिल बहलाने को

वो नज़र न आई नज़र जो पहचाने मुझे
यूँ तो आँखें दी हैं खुदा ने जमाने को

जहाँ में और भी रहते हैं मेरे सिवा
सबको मिलता है क्यूँ 'राकेश' ही सताने को
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