ग़ज़ल : चोरी-चोरी मुझको

चोरी-चोरी मुझको यूँ न देखा कर
क्या-क्या कहेंगे लोग जरा-समझा कर

नींद से बोझल हैं पलकें अब तलक तेरी
मेरी खातिर तू इतना भी न जागा कर

मुझे सोचने में कहीं भूल न जाओ खुद को ही
सोचाकर मुझे मगर इतना भी न सोचा कर

आना है तो आ जाओ जिन्दगी में मेरी
या फिर तू सपनों में भी न आया कर

इश्के-'राकेश' में रंगे-हकीकत नज़र आएगा
दिल को देखाकर, सूरत पे न जाया कर
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