पत्थरों पे कर लेना तुम यकीं
लेकिन इन्सानों पर करना नहीं
इन्सां को मुहब्बत मिले जहां से
करता है ये दगा, आखिर वहीं
खुदा-ए-इश्क तुम कहते हो जिसे
मतलबे-इश्क तक उसे पता नहीं
उजले जिस्म की चाह रखने वालों
कीमते-साफदिल तुम्हें पता नहीं
आस न छोड़ उससे इंसाफ की
खुदा के घर देर है अंधेर नहीं
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