ग़ज़ल : अपना लीजिए

अपना लीजिए या ठुकरा दीजिए
फैसला आज मगर सुना दीजिए

अपना कहने में मुझे, आए गर हया तुझे
समझ जाऊँगा बस मुस्कुरा दीजिए

तुमको चाहता हो गर कोई मेरे सिवा
मुकाबला उसका मुझसे करा दीजिए

तेरी गोद में रखकर सिर सो जाऊँगा
मेरे बालों में हाथ फिरा दीजिए

जिंदगी जीने में आसान हो जायेगी
मये-मुहब्बत मुझको पिला दीजिए

सब कुछ अपना बना लीजे इश्क को
फर्क, धर्म, जात का ये मिटा दीजिए

शेख जी खुद को जो भी कहे पारसा
आईना आज उसको दिखा दीजिए

आने वाला है अब महफिल में 'राकेश'
कहीं दिल, कहीं पलकें बिछा दीजिए।
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