इश्क का अपना मज़ा होता है।
इसमें मिलने का, ज़ुदाई का मज़ा होता है।।
बात महफिल की कहाँ इश्क वाले करते हैं,
हो ज़ुदाई तो तनहाई का मज़ा होता है।
कभी राज़ी तो कभी यार फ़िदा रहता है,
कभी दिलदार की रूसवाई का मज़ा होता है।
कभी आँखों से तो ये आँखें नहीं मिलती,
कभी चेहरे की पढ़ाई का मज़ा होता है।
यूँ तो चेहरे को देखने से खुशी मिलती है,
तो कभी देखकर रूलाई का मज़ा होता है।
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